बन्दर -कोइ कहता
कोइ मंकी चाहे जो
कह लो हम तो है
रामभक्त हनुमान
वंशज !!
विज्ञान का है कहना
मानव के आदि हम
मुझसे ही है विकास
मानव का मानव का
विज्ञान मानव जनता
नहीं मानता
माने तो माने कैसे?
बानर तो रह गए
जैसे के तैसे नर तो
नारायण से आगे निकल
नारायण हो गए
औने पौने बौने ।।
बन्दर कि अपनी
भाषा समाज संचार
संवाद अपनी शैली।
जब बैठते साथ कभी
चर्चा करते क्या चीज है
मानव?
मंदिर में बंदर स्वरूप
हनुमान कि पूजा करता
मंगलवार का व्रत रखता
आराध्य भी कहता!!
प्रत्यक्ष हमारा अपमान
तिरस्कार क्यों करता?
राम रावण के युद्ध में
हमने माता सीता का
पता लगाया सीता माता
मुक्ति युद्ध के नारायण
हम बानर!!
महा समुद्र को लाँघ
बाँध चूर किया अभिमान
धुल दुषित कर उसे हद
बतलाया ।।
महा युद्ध में बृक्ष पर्वत और
चट्टानों को शत्र बनाया ।।
मेरी कितनी पीड़ी
युद्ध के भेट चढ़ गयी
बिना किसी दुःख पीड़ा के
राम को विजयी बनाया।।
जगह जगह पर
मंदिर मेरे
मेरे नाम प्रसाद से
जाने कितने ही
मानव पलते।।
राम चरित मानस
हनुमान चालीसा में
मेरे ही गुण भजते।।
अब देखो सचाई क्या है
भटक रहा हूँ इधर उधर!
जंगल वन मेरा बसेरा
जो अब है गायब
मेरे मित्र साथी अब है
नदारत।।
हम बंदर मानव
समाज का हिस्सा
बनने कि कोशिश में
गली मोहल्ले चौराहो
शहर गावँ नगर नगर!!
लहु पथ गामिनी
विश्रामालय पर हर
रोज सुबह शाम
मानव बनने कि
कोशिश करते हम वानर ।।
भला हो डार्विन का
जिसने हममें है
आस जगा रखी ।
जो तुम प्रयास अभ्यास
करोगे वही तुम बन पाओगे।।
जिसका तुम त्याग
करोगे उसको विसराओगे ।
वन जंगल का त्याग किया
मानव बनने का अभ्यास
कर रहा ।
लेकिन मानव तो
मुझसे नफ़रत करता
गोली डंडो से मारता ।।
दिन रात दो रोटी की
तलाश बन्दर इधर उधर
भटक रहा।।
मानव है स्वार्थी
अपनी भूख मिटाने को
मुझे नचाता कैद कर
तमाशा बनाता ।।
बन्दर हूँ मर्यादा
पुरुषोत्तम का सेवक हूँ ।
मैं तो उनकी मर्यादा को
उनकी ख़ुशी के लिये
निभाता ।।
यही अंत नहीं
मानव मानवता
उत्कर्ष में मेरे
बलिदान त्याग का ।
जब भी कोई
असाध्य आफत में
मानव फंस जाता ।
मेरी किडनी गुर्दे
फेफड़े से अपनी
जान बचाता ।।
प्रयोग, प्रयोगशाला
मानव का बन्दर
अपने राजा हनुमान की
इच्छा में मानव कल्याण
फलीभूत करने को पैदा होता
और मरता।।
कभी वाहन के निचे
दब कर मर जाता
कभी विद्युत खंभों के
झटके से जल जाता ।।
कभी लौह पथ
गामिनी से काटता
मरता मेरे साथी मेरी
मृत्यु पर एक साथ सब
मिल बैठ ॐ शांति
शोक मानते क्लेश कष्ट मे ।
मर्यादा पुरुषोत्तम् से
करते एक सवाल
कहाँ गयी मर्यादा
आपकी मानव को
क्यों नहीं समझते ।।
सर्दी गर्मी बारिश की
मार झेलते तड़फ तड़फ
मर जाते ।
मुझमे भी एहसास है
मुझमे भी श्री राम है
इतना गर समझ सके
हे मानव समझो तब
हर बन्दर हनुमान है।!
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!
0 Comments