“पलाश के फूल”
है वे पलाश के फूल
लाल-पीले
जंगल में खिल गए है,
आ गया वसंत
थोड़ा गर्मी में निखर गए है,
न कोई खुशबू
न कोई खरीदकर,
फिर भी चटककर
जमीन पर बिखर गए है,
बदल गए है
दूसरों की खातिर रंगों में
चेहरों पर मुस्कान दे गए है,
कर रहे है मिलान
झोपड़ पट्टी के बच्चे भी
अपनी कहानी
इन पलाश के फूलों से,
बटोरकर झोले में जंगल से
बिसरते सब कुछ
सुर्ख
इनके रंगों में ढल गए है।
2. “चाय सी जिदंगी”
जिदंगी चाय सी
नजर आती है,
कभी दुखों की काली तो
कभी सुखों की दूध जैसी
चाय सामने आ जाती है,
निकलती रहती है भाप भी
गरम परिस्थितियों माफिक,
सब्र की फूंक से धीरे-धीरे
हलक से नीचे की जाती है,
उड़ जाती है थकान
कोशिशों के छोटे-छोटे घूँट से,
सफलता की मिठास से
चेहरे पर मुस्कान आ जाती है,
होता है ताजगी का अनुभव
संघर्ष की थकान उतर जाती है,
होता है जो चुनौतियों और चाय का आदी
फीकी-तीखी, हाफ-फुल
हर चाय चल जाती है,
लेते रहते है वे चाय और
जिदंगी का एन्जॉय,
प्याली और ताली
हर बार उन्हीं के हिस्से में आती है|
0 Comments