ग़ज़ल - दिनेश प्रताप सिंह चौहान

2122 1212 22


सामने अपने ,....आईना कर के,

शर्म आई है ,.....सामना कर के।


जादू है ,..और फ़क़त फ़ानी जग,

आप देखें तो, ...तजरबा कर के।


ज़िंदगी में ,....जो चाहिए इज्ज़त,

खुद को रखिए,ज़रा बड़ा कर के।


व्यर्थ ज़ल्दी में ,,है ये दुनिया क्यों?

उम्र कटती ,.....ज़रा ज़रा कर के।


कुछ ने काटी ,..मज़ा मज़ा कर के,

कुछ ने काटी,. ख़ुदा ख़ुदा कर के।

 

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