राज़कुमार मिश्र 'प्रतापगढ़िया'

बह्र - 2122 1212 22

क़ाफ़िया - 'आने'

रदीफ़ - 'से'


है शिकायत यही ज़माने से।

बाज आता नहीं सताने से।।


है गलतफ़हमी दिल तुझे , उसको ,

भूल जाएगा तू भुलाने से।।


टूट जाते हैं खास कुछ रिश्ते ,

सिर्फ़ इक बार आजमाने से।।


कहते हैं लोग झूठ , दिल का ग़म ,

हल्का हो जाता है बताने से।।


किस तरह होती है चुभन दिल को ,

पूछ मत गुल के मुस्कुराने से।।


है गणित इश्क का अलग इसमें ,

जीत मिलती है हार जाने से।।


इश्क सीखे जहां पे रांझे कई ,

'राज़' आता है उस घराने से।।

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