बह्र - 2122 1212 22
क़ाफ़िया - 'आने'
रदीफ़ - 'से'
है शिकायत यही ज़माने से।
बाज आता नहीं सताने से।।
है गलतफ़हमी दिल तुझे , उसको ,
भूल जाएगा तू भुलाने से।।
टूट जाते हैं खास कुछ रिश्ते ,
सिर्फ़ इक बार आजमाने से।।
कहते हैं लोग झूठ , दिल का ग़म ,
हल्का हो जाता है बताने से।।
किस तरह होती है चुभन दिल को ,
पूछ मत गुल के मुस्कुराने से।।
है गणित इश्क का अलग इसमें ,
जीत मिलती है हार जाने से।।
इश्क सीखे जहां पे रांझे कई ,
'राज़' आता है उस घराने से।।
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