एकांतवास- नरेश चाष्टा “नक्ष”

 व्याकुल मन दर्पण में देखें ।
एक विरक्त एहसास।
उस दर्पण में खोज ना पाया।
अपने मन की आस।

छवि मानो ओस का मोती।
दुर्लभ वो एहसास।
उसको पाना मृगतृष्णा सा।
कहां बुझे वह प्यास।

बोझिल मन खोज रहा है।
वह दुर्गम पाथ।
मिलना जहां सुलभ हो उसका।
अपने मन के साथ।

अथक प्रयास भागीरथी सा ।
निर्मल वो एहसास ।
आखिर मन ने पा ही लिया।
वह एकांतवास।

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