ग़ज़ल – दिनेश प्रताप सिंह चौहान

 1.

2122 1212 22/112

ज़िंदगी का,अज़ब फ़साना है,
मौत ही ,आखिरी ठिकाना है।

सिर्फ़ ,.कपड़े बदलते रहते हैं,
आना जाना,फ़क़त बहाना है।

सिर्फ़ तब तक ,क़याम है तेरा,
जब तलक,तेरा पानी दाना है।

ज़िंदगी का ,..उसूल ये रखिए,
जो गिरा हो, …उसे उठाना है।

हार मानो न ,..ज़िंदगी से तुम,
मुश्किलों में भी,.मुस्कुराना है।

2.

22 22 22 22

अन्दर बाहर ,…….इक जैसा हूँ
जैसा दिखता ,…..बस वैसा हूँ।

बात सभी ,….मन की कहता हूँ,
जो भी लिखता,सच लिखता हूँ।

पूरा हो न सका ,…..जीवन भर,
एक अधूरा ,……वह सपना हूँ।

उम्र भले ही ,…….बढ़ती जाती,
अन्दर से ,….अब भी बच्चा हूँ।

बाहर से,…… खामोश भले ही,
अंदर अंदर ,……पर दरिया हूँ।

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