रोकना उनको जिन्हें हों प्राण प्यारे
टोकना उनको जिन्होंने कर्म हारे
भाग्य को कुछ भी नहीं मैं मानता हूँ
प्राण को हँसकर लुटाना जानता हूँ
कर्म-लिपि ने भाग्य-पन्ने पर लिखा है
यह रसिक मानव बड़ा प्यासा दिखा है
घोर परिवर्तन, सुनो, यह चाप आयी
आज तेरा आगमन कल है विदाई
आज है सुख-स्वप्न कल दुख-भार होगा
क्यों विकल रे! फिर यही संसार होगा
मैं नहीं अस्थिर, सतत है कृत्य मेरा
वेदना के दंश पर है नृत्य मेरा
सूर्य पूरब से निकलता लाल आया
बीतता है दिन किसी दिन काल आया
कँप-कँपाकर छटपटाकर प्राण त्यागे
शेष क्या अन्तर मनुज-पशु में अभागे!
भाग्य है पशु का मनुज का भाग्य क्या है
प्रेम का है अर्थ क्या, वैराग्य क्या है?
तू नहीं प्रेमी अरे! भटकी जवानी
वासना के गर्त की मैली कहानी!
बूँद भर अभिमान को ताने खड़ा है
तू स्वयं को स्वयं-भू माने खड़ा है
झर रहे जग-वृक्ष से नित पात-मानी
तू समय की जीभ पर दो बूँद पानी
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