प्यारे बच्चो! क्या तुमने कभी सोचा है कि हम जो शब्द बोलते हैं, उनकी कितनी ताकत होती है? एक ही बात को हम कई तरह से कह सकते हैं – कभी प्यार से, कभी गुस्से से, और कभी बिना सोचे समझे। इस अध्याय में हम जानेंगे कि हमारे शब्दों का कितना गहरा अर्थ होता है और कैसे हमारे काम हमारे शब्दों से भी ज़्यादा मायने रखते हैं।
1. शब्दों का जादू और जीभ का कमाल
हमारी ज़ुबान (जीभ) बहुत ही कमाल की चीज़ है!
यह मीठा भी बोल सकती है: जब हम प्यार से बात करते हैं, सम्मान देते हैं, और बड़ों का आदर करते हैं, तो हमारी जीभ सबसे अच्छी चीज़ बन जाती है।
यह कड़वा भी बोल सकती है: लेकिन जब हम किसी को गाली देते हैं, ताना मारते हैं या धमकाते हैं, तो यही जीभ सबसे बुरी चीज़ बन जाती है।
याद रखो: तलवार का घाव तो भर जाता है, पर जीभ से निकली कड़वी बात का घाव दिल पर हमेशा रहता है। इसलिए, हमेशा सोच-समझकर और मीठा बोलना चाहिए।
भीतरी बात (गहरी सीख): जैसे रहीम दास जी ने कहा है: रहिमन जिव्हा बावरी कह गई सर्ग पाताल। आप तो कह भीतर भई जूता खात कपाल ।। इसका मतलब है कि हमारी जीभ बावली (पागल) होती है, वह कुछ भी बोलकर झगड़ा करा देती है। जीभ तो अंदर चली जाती है, पर उसकी वजह से हमारे सिर को (यानी हमें) डाँट या मार खानी पड़ती है। इसलिए, बोलने से पहले हमेशा सोचना चाहिए।
2. शब्दों को व्यर्थ न जाने दें: कर्म की महत्ता
हम अक्सर कहते कुछ हैं, और करते कुछ और हैं। लेकिन असली बात तब बनती है, जब हमारे शब्द और हमारे काम एक जैसे हों।
सोचो: अगर कोई कहे कि वह तुम्हारी मदद करेगा, लेकिन मदद करे नहीं, तो क्या तुम उस पर भरोसा करोगे? नहीं ना!
कर्म ही पहचान: हमारे शब्द तब और शक्तिशाली बन जाते हैं, जब हम उन्हें अपने कामों से सच करके दिखाते हैं। जो लोग अपने शब्दों को व्यर्थ नहीं जाने देते, यानी जो कहते हैं, वही करते हैं, वे जीवन में बहुत सफल होते हैं।
अच्छे जीवन-मूल्य: प्यार, दया, और दूसरों की मदद करना - ये बहुत अच्छे गुण हैं। ये सिर्फ कहने की बातें नहीं हैं, बल्कि इन्हें हमें अपने व्यवहार में भी लाना चाहिए।
चलो, एक कहानी सुनते हैं: राजा, माली और तीन मेंढक
एक बार की बात है, एक राजा थे। वे बहुत समझदार थे, पर उनके मन में एक सवाल था: "मैं राजा क्यों हूँ? मैं बहुत से ऐसे लोगों से मिलता हूँ जो मुझसे ज़्यादा योग्य लगते हैं, फिर भी मैं ही राजा क्यों हूँ?"
राजा ने अपने सभी मंत्रियों और विद्वानों को बुलाया और कहा, "मुझे इस सवाल का जवाब पाँच दिन के अंदर चाहिए। अगर तुम जवाब नहीं दे पाए, तो तुम सब अपनी-अपनी नौकरियाँ खो दोगे!"
सभी लोग बहुत परेशान हो गए। जिन लोगों को बुलाया गया था, उनमें राजा का माली भी था। राजा माली की समझदारी और ईमानदारी से बहुत प्रभावित थे, इसलिए माली होने के बावजूद उसे दरबार में खास जगह मिली हुई थी।
चार दिन बीत गए और किसी को जवाब नहीं मिला। माली भी बहुत चिंतित था। जब वह घर पहुँचा तो उसने रात का खाना भी नहीं खाया। उसकी छोटी बेटी ने पूछा, "पिताजी, क्या बात है? आप इतने परेशान क्यों हैं?"
माली ने उसे राजा के सवाल के बारे में बताया। बेटी ने मुस्कुराते हुए कहा, "चिंता मत करो, पिताजी! कल मुझे महल ले चलना। मैं राजा से बात करूँगी।"
माली को अपनी बेटी की बात पर पूरा भरोसा तो नहीं हुआ, लेकिन उसे थोड़ी तसल्ली मिल गई, जैसे रेगिस्तान में प्यासे मुसाफ़िर को पानी की कुछ बूँदें मिल जाएँ। माली ने सुकून से खाना खाया और सो गया।
अगले दिन, माली अपनी बेटी को लेकर राजमहल पहुँचा। बेटी ने राजा से कहा, "महाराज, आपके इस सवाल का जवाब महल में नहीं मिलेगा। आपको मेरे पीछे-पीछे आना होगा।"
राजा, उनके मंत्री और यहाँ तक कि बहुत सारी प्रजा भी उस छोटी लड़की के पीछे-पीछे चल दी।
कुछ किलोमीटर चलने के बाद, वे एक कुएँ के पास पहुँचे। वहाँ एक मेंढक प्यास से तड़प रहा था। माली की बेटी ने उस मेंढक से पूछा, "बताओ मेंढक, राजा राजा क्यों है?"
मेंढक ने धीमी आवाज़ में कहा, "यह मेरे बस की बात नहीं। यहाँ से कुछ मील और आगे जाओ। तुम्हें एक और कुएँ के पास धूल में लोटता हुआ एक मेंढक मिलेगा। उसके पास तुम्हारे सवाल का जवाब है।"
गर्मियों के दिन थे और सूरज तेज़ी से चमक रहा था, लेकिन सभी लोग अगले कुएँ की ओर बढ़ चले। अंत में, वे दूसरे कुएँ के पास पहुँचे, जहाँ उन्होंने धूल में लोटते हुए एक मेंढक को देखा।
माली की बेटी ने इस मेंढक से भी वही सवाल पूछा, "बताओ मेंढक, राजा राजा क्यों है?"
मेंढक ने कहा, "मैं तुम्हें अपने पिछले जन्म की कहानी सुनाता हूँ। हम तीन भाई थे। हम बहुत गरीब थे और मुश्किल से दिन काट रहे थे। एक दिन, हमें थोड़ा-थोड़ा खाना मिला। हम अभी खाना खा ही रहे थे, तभी एक बहुत भूखा बूढ़ा आदमी हमारे पास आ गया।"
"मैं सबसे बड़ा भाई था," मेंढक ने बताया। "उस बूढ़े आदमी ने मुझसे खाना माँगा, तो मैंने कहा, 'अगर मैं तुम्हें अपना खाना दे दूँगा, तो मैं क्या धूल खाऊँगा?'"
"फिर उसने मेरे दूसरे भाई से खाना माँगा। उसने भी कहा, 'मैं तुम्हें अपना भोजन देकर भूख-प्यास से क्यों मरूँ?'"
"जब उस बूढ़े आदमी ने तीसरे और सबसे छोटे भाई से खाना माँगा," मेंढक ने आगे कहा, "तो उसने चुपचाप अपने हिस्से का सारा खाना उस भूखे बुजुर्ग को दे दिया और कहा, 'मैंने तो कल भी खाया था।' जबकि सच तो यह था कि वह खुद दो दिन से भूखा था!"
मेंढक ने अपनी कहानी खत्म करते हुए कहा, "यह राजा, यही वह तीसरा भाई है! यह राजा इसलिए राजा है, क्योंकि इसके शब्दों के अर्थ का महत्व है। कहते तो बहुत से लोग हैं, लेकिन करते नहीं। इसने अपने शब्दों को व्यर्थ नहीं किया, बल्कि उन्हें अपने कर्मों में भी बदल दिया।"
राजा और सभी दरबारियों को यह बात सुनकर बहुत कुछ समझ आया। यह कहानी हमें सिखाती है कि राजा के राजा होने का कारण सिर्फ पद नहीं है, बल्कि उसके अच्छे व्यवहार और जीवन मूल्य हैं।
कहानी से सीख (Moral of the story):
जो हम कहते हैं, वही हमें करना भी चाहिए।
हमारे शब्द तब तक पूरे नहीं होते, जब तक हम उन्हें अपने कामों से सच न कर दें।
दूसरों की मदद करना और दयालु होना ही सबसे बड़ी दौलत है।
शब्दों का सही उपयोग करो, क्योंकि तुम्हारे कर्म तुम्हारे शब्दों से भी ऊँची आवाज़ में बोलते हैं!
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