राजा रामधन और अच्छा करने का फल

 ज़रूर, इस प्रेरक प्रसंग को एक आकर्षक बाल कहानी में बदलते हैं, जिसमें शीर्षक भी शामिल होगा:


शीर्षक: राजा रामधन और अच्छा करने का फल

बहुत समय पहले की बात है, एक राज्य में राजा रामधन नाम के एक बहुत अच्छे राजा रहते थे। वे अपने नाम की तरह ही बहुत धनवान नहीं थे, पर उनका दिल सोने का था। उनका सबसे बड़ा खजाना था, अपनी प्रजा की सेवा करना! उनकी प्रजा भी उन्हें भगवान राम की तरह ही प्यार करती थी। राजा रामधन सभी की मदद करते थे, चाहे वे उनके अपने राज्य के लोग हों या किसी और राज्य के। उनकी अच्छाई और दयालुता की कहानियाँ दूर-दूर तक फैली हुई थीं।

यहाँ तक कि उनके दुश्मन राजा भी उनकी तारीफ करते थे! उन्हीं दुश्मन राजाओं में से एक था राजा भीमसिंह। राजा भीमसिंह को राजा रामधन की बढ़ती इज़्ज़त और प्यार देखकर ईर्ष्या होती थी। इस ईर्ष्या के कारण, उसने राजा रामधन को हराने की एक चाल सोची और कुछ समय बाद राजा रामधन के राज्य पर हमला कर दिया।

राजा भीमसिंह ने धोखे से युद्ध जीत लिया, और राजा रामधन को अपना राज्य छोड़कर जंगल में जाना पड़ा।

लेकिन जंगल में जाने के बाद भी, राजा रामधन की लोकप्रियता कम नहीं हुई। हर जगह उन्हीं की बातें चलती थीं कि वे कितने अच्छे राजा थे। यह देखकर राजा भीमसिंह को बिल्कुल चैन नहीं मिला। उसने सोचा, "मुझे राजा रामधन को खत्म करना होगा!" उसने एलान किया कि जो भी राजा रामधन को पकड़ कर उसके सामने लाएगा, उसे सौ सोने के सिक्के दिए जाएँगे।

दूसरी तरफ, राजा रामधन जंगल में भटक रहे थे। तभी उन्हें एक आदमी मिला, जो कहीं जा रहा था। उस आदमी ने राजा रामधन से कहा, "भाई, तुम इसी जगह के लगते हो। क्या तुम मुझे राजा रामधन के राज्य की तरफ का रास्ता बता सकते हो?"

राजा रामधन ने पूछा, "तुम्हें राजा से क्या काम है?"

तब उस आदमी ने दुखी होकर बताया, "मेरे बेटे की तबियत बहुत खराब है, और उसके इलाज में मेरा सारा पैसा खत्म हो गया है। मैंने सुना है कि राजा रामधन सभी की मदद करते हैं, इसलिए मैं उनसे मदद माँगने जा रहा हूँ।"

यह सुनकर राजा रामधन को उस आदमी पर दया आ गई। वे जानते थे कि मदद की किसे ज़्यादा ज़रूरत है। वे उस आदमी को अपने साथ लेकर सीधे राजा भीमसिंह के दरबार पहुँच गए!

राजा रामधन को देखकर दरबार में सब हैरान रह गए। राजा रामधन ने राजा भीमसिंह से कहा, "हे राजन! आपने मुझे खोजने वाले को सौ सोने के सिक्के देने का वादा किया था। मेरे इस दोस्त ने मुझे आपके सामने पेश किया है। इसलिए, कृपया इसे वे सौ सोने के सिक्के दे दें।"

यह सुनकर राजा भीमसिंह हैरान रह गए। उन्हें एहसास हुआ कि राजा रामधन सच में कितने महान और निस्वार्थ हैं। वे अपनी जान दाँव पर लगाकर भी दूसरे की भलाई कर रहे थे! राजा भीमसिंह को अपनी गलती समझ आ गई। उन्होंने अपनी गलती मानी और राजा रामधन को उनका राज्य वापस लौटा दिया। साथ ही, उन्होंने वादा किया कि वे भी हमेशा राजा रामधन के दिखाए अच्छे रास्ते पर चलेंगे।

कहानी से सीख (Moral of the story): यह कहानी सिखाती है कि हमें हमेशा अच्छे काम करने चाहिए। अगर हम दूसरों का भला करते हैं, तो अंत में हमारा भी भला ही होता है। रास्ते में चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, अगर हम अच्छे और सच्चे बने रहेंगे, तो अंत हमेशा अच्छा ही होगा।

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