भानुकुल भानुरूप,धरा का यशस्वी भूप,
वीर भूमि मेवाड़ को, मिला वह वर था।
संघर्ष का गान वह, शौर्य का बखान वह,
कुंभा, सांगा वंश जन्मा, उदय कुँवर था।
पर्वत-सी कद-काठी, साहस से भरी छाती,
भय को न जानता वो, नाहर-सा नर था।
बादलों से म्लेच्छ छाये, देख भूप घबराएँ,
दासता के मौन बीच, आजादी का स्वर था।
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