मनहरण घनाक्षरी छन्द - डॉ. पवन कुमार निजामाबाद तेलंगाना

 भानुकुल भानुरूप,धरा का यशस्वी भूप,

वीर भूमि मेवाड़ को, मिला वह वर था।

संघर्ष का गान वह, शौर्य का बखान वह,

कुंभा, सांगा वंश जन्मा, उदय कुँवर था।

पर्वत-सी कद-काठी, साहस से भरी छाती,

भय को न जानता वो, नाहर-सा नर था।

बादलों से म्लेच्छ छाये, देख भूप घबराएँ,

दासता के मौन बीच, आजादी का स्वर था।

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