छांव की जगह घांव – राजेश देशप्रेमी

 बुरे वक्त में

जो आदमी

बढ़ाये फासला

समझ लेना

आदमी भरोसे के

लायक – कायल नहीं

हां, बुरे वक्त में ही होती

आदमी, आदमी की पहचान

रिश्तों की भीड़ में

कहने को तो सब अपना

मगर, मन में खोट पाले

ऐसे लोग वक्त आने पर

छांव की जगह देते घांव

बात – बात पर गिनाते एहसान

और खुद को बताते महान

बतंगड़ के सहारे उड़ाते मजाक

हर बात पर जताते एतराज

सच, दर्द – कब्र के लिये अब

गैरों की कहां पड़ती जरूरत

रूलाने के लिये अपने ही काफी।

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