मतला - रीता गुलाटी ऋतंभरा

 2122 2122 2122 212

आज से पहले कभी रिश्तों में यूँ धोख़ा न था
इतनी ख़ामोशी से दिल भी आज तक टूटा ऩ था

वक्त ऐसा था यहां भी जिंदगी का यार कुछ।
इतनी खामोशी से क़ोई आईना टूटा न था।गिरह

मानती हूँ क्या ही गु़जरी यार अब तेरे बिना।
सोचती हूँ यार तूने दिल में अब रक्खा न था

दर्द कैसे दूर होगा जख्म दिल पर जो लगें।
साथ तेरा ढूँढती कोई यहाँ अपना न था।

आज तड़पे बिन तुम्हारे हाय कैसे अब रहे।
डालतें हो मुश्किलों में, यार तू अच्छा न था।

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