नन्हा दीया और चाँद का राज़

 एक गाँव में एक झोपड़ी थी। उस झोपड़ी में एक आदमी रहता था। रात के समय, वह अपनी झोपड़ी के अंदर एक छोटा सा दीया जलाकर कोई किताब पढ़ रहा था। दीया अपनी छोटी सी रोशनी से कमरे को हल्का-हल्का रोशन कर रहा था।

आधी रात बीत चुकी थी। आदमी पढ़ते-पढ़ते थक गया। उसने एक लंबी साँस ली और "फूँक!" मारकर दीये को बुझा दिया।

लेकिन जैसे ही दीया बुझा, वह आदमी हैरान रह गया!

दीया बुझते ही, बाहर से पूर्णिमा के बड़े और चमकीले चाँद की ठंडी-ठंडी रोशनी कमरे में फैल गई। पूरा कमरा चाँदनी से भर गया!

वह आदमी यह देखकर बहुत हैरान हुआ कि जब तक उसका छोटा सा दीया जल रहा था, तब तक बाहर इतना बड़ा और चमकीला चाँद मानो इंतज़ार कर रहा था! और जैसे ही दीया बुझा, चाँद की रोशनी झोपड़ी के अंदर आ गई।

उस आदमी को तुरंत समझ में आ गया!

उसने सोचा, "अरे हाँ! यह दीया तो मेरे अहंकार जैसा है। हम भी अपने जीवन में ऐसे ही छोटे-छोटे अहंकार के दीये जलाकर रखते हैं।"

जैसे, 'मैं सबसे अच्छा हूँ' या 'मुझे सब कुछ पता है' या 'मैं ही सबसे ज़्यादा स्मार्ट हूँ'।

"और जब तक ये अहंकार के छोटे-छोटे दीये जलते रहते हैं," उसने सोचा, "तब तक भगवान का बड़ा और चमकीला चाँद (यानी शांति और खुशी) हमारे जीवन में आ नहीं पाता!"

उसे यह भी समझ आया कि जब तक हम अपनी बातों को, अपने घमंड को, अपनी सोच को थोड़ा आराम नहीं देंगे, तब तक हमारा मन शांत नहीं होगा। और जब हमारा मन शांत होगा, तभी हमें भगवान की अच्छी बातें और अपने अंदर की खुशी महसूस होगी!

कहानी से सीख :

  • अहंकार एक छोटा दीया है: हमारा घमंड हमें बड़ी रोशनी (खुशी और शांति) देखने से रोकता है।

  • शांत रहना ज़रूरी: जब हम शांत रहते हैं और अपने मन को आराम देते हैं, तभी हमें अच्छी बातें समझ आती हैं।

  • बड़ा सुख अंदर है: सच्ची खुशी और शांति पाने के लिए अपने छोटे-छोटे घमंड को बुझाना सीखो!

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