दादी की नई दुनिया: पिंकू का कमाल

 एक शहर में रमेश अंकल और उषा आंटी रहते थे। उनके प्यारे बेटे का नाम था पिंकू। पिंकू की दादी, सरला दादी, उनके साथ रहती थीं।

एक दिन सरला दादी ने रमेश अंकल से कहा, "रमेश बेटा, मुझे गाँव भेज दो। यहाँ मेरा मन नहीं लग रहा है।"

रमेश अंकल सोच में पड़ गए। गाँव में उनके पुराने घर में अब कोई नहीं रहता था। उन्होंने पिछले महीने ही बड़ी मुश्किल से दादी को समझा-बुझाकर शहर अपने साथ लाए थे। लेकिन दादी फिर से गाँव जाना चाहती थीं। रमेश अंकल ने उषा आंटी की तरफ देखा, उनके चेहरे पर भी उदासी थी।

"माँ," रमेश अंकल ने समझाया, "मैं हूँ, उषा है, और आपका पोता पिंकू भी तो है... इतने सारे लोग यहाँ हैं, फिर मन क्यों नहीं लग रहा आपका? गाँव में तो कोई भी नहीं है!"

सरला दादी ने अपनी परेशानी बताई, "बेटा, तुम्हारी बात सही है, लेकिन तुम ऑफ़िस चले जाते हो, पिंकू स्कूल चला जाता है, और उषा घर के कामों में बिज़ी रहती है। तब मेरा समय काटना बहुत मुश्किल हो जाता है। टीवी भी कोई कितना देखे...। गाँव में तो चार लोगों से बातें करके समय बीत जाता था।"

रमेश अंकल को दादी की बात समझ में आई, पर उन्हें तुरंत कोई तरीका नहीं सूझा। उषा आंटी भी सोच रही थीं कि कैसे दादी की बोरियत दूर की जाए।

तभी, जो पिंकू इतनी देर से चुपचाप सब सुन रहा था, वह बोल पड़ा, "पापा! दादी का व्हाट्सएप और फ़ेसबुक बना दीजिए! फिर दादी आराम से ढेर सारे लोगों को देख पाएंगी और उनसे बातें भी कर सकेंगी!"

पिंकू की बात सुनकर रमेश अंकल को एक उपाय मिल गया! उन्होंने प्यार से पिंकू के सिर पर हाथ फेरा और दादी से बोले, "माँ, आप परेशान मत होइए। मैं आपकी बोरियत दूर करने का इंतज़ाम करता हूँ।"

शाम को ऑफ़िस से लौटते हुए रमेश अंकल दादी के लिए एक नया टैबलेट ले आए। सरला दादी को इस मशीन के बारे में कुछ भी नहीं पता था, इसलिए उन्होंने इसे 'फ़िज़ूल खर्च' कहा और फिर से गाँव जाने की बात दोहराई। लेकिन रमेश अंकल पूरी तैयारी के साथ आए थे।

उन्होंने दादी को समझाया, "माँ, आप अभी इसे चलाना नहीं जानतीं, इसलिए इसे फ़िज़ूल खर्च कह रही हैं। लेकिन जैसे-जैसे आप इसे सीखेंगी और इसके फ़ायदे जानेंगी, यह आपको बहुत अच्छा लगने लगेगा।"

दादी को टैबलेट चलाना सिखाने की ज़िम्मेदारी पिंकू को दी गई। रमेश अंकल और उषा आंटी भी जब भी उन्हें समय मिलता, दादी को कुछ न कुछ समझाते थे। लेकिन पिंकू रोज़ नियम से दादी को टैबलेट और इंटरनेट की छोटी-छोटी बातें बताता था। पिंकू के साथ टैबलेट सीखना दादी को बहुत मज़ेदार लगने लगा था!

"दादी, देखिए, यह गूगल है," पिंकू समझाता था। "इस पर आप कोई भी जानकारी खोज सकती हैं। देश-दुनिया की ख़बरों से लेकर आपके व्रत-त्योहार, कहानियाँ, सब कुछ यहाँ मिल जाएगा। और यह यूट्यूब है, यहाँ आपको जो भी गीत, भजन या प्रवचन सुनना हो, सब मिल जाएगा!"

"यह सब खोजने के लिए आपको बस इस माइक जैसे दिखने वाले बटन पर क्लिक करके जो खोजना हो, वह बोल देना है।"

दादी को ये सारी बातें बहुत मज़ेदार लगीं।

धीरे-धीरे, पिंकू ने दादी का व्हाट्सएप और फ़ेसबुक अकाउंट भी बना दिया। उसने गाँव और परिवार के दूर-दराज बैठे लोगों को दादी से जोड़ दिया। अब सरला दादी को दूर बैठे परिवार के लोगों का हालचाल मिलने लगा था। फ़ेसबुक पर दूर-दूर के रिश्तेदारों की तस्वीरें देखकर भी उन्हें बहुत अच्छा लगता था। पोते की इस नन्हीं सी कोशिश ने दादी के लिए एक बिल्कुल नई दुनिया खोल दी थी!

एक दिन रमेश अंकल ने पूछा, "माँ, अब यहाँ मन लग रहा है न?"

"हाँ रे!" सरला दादी की आवाज़ में बहुत प्यार था। "अब तो खूब मन लग रहा है, और यह सब मेरे प्यारे पोते का कमाल है!"


कहानी से सीख:

  • परिवार का साथ सबसे ज़रूरी है।

  • नई चीज़ें सीखने से कभी मत डरो, चाहे तुम्हारी उम्र कोई भी हो!

  • बच्चे भी कभी-कभी बड़ों को बहुत कुछ सिखा सकते हैं।

  • तकनीक (जैसे टैबलेट) हमें दूर बैठे लोगों से भी जोड़ सकती है।

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