सरस्वती स्तवन (सरस्वती वंदना-बृज भाषा) - आचार्य संजीव वर्मा “सलिल”, जबलपुर

 


मातु! सुनौ तुम आइहौ आइहौ,

काव्य कला हमकौ समुझाइहौ।

फेर कभी मुख दूर न जाइहौ

गीत सिखाइहौ, बीन बजाइहौ।

श्वेत वदन है, श्वेत वसन है

श्वेत लै वाहन दरस दिखाइहौ।

छंद सिखाइहौ, गीत सुनाइहौ,

ताल बजाइहौ, वाह दिलाइहौ।


सुर संधान की कामना है मोहे

ताल बता दीजै मातु सरस्वती।

छंद की; गीत की चाहना है इतै,

नेकु सिखा दीजै मातु सरस्वती।

आखर-शब्द की, साधना बैंक सी

रस-लय दीजै मातु सरस्वती।

सत्य समय का; बोल-बता सकूँ

सत-शिव दीजै मातु सरस्वती।


शब्द निशब्द अशब्द कबै भए,

शून्य में गूंज सुना रय शारद।

पंक में पंकज नित्य खिला रय;

भ्रमरों लौं भरमा रय शारद।

शब्द से उपजै; शब्द में लीन हो,

शब्द को शब्द ही भा रय शारद।

ताल हो; थाप हो; नाद-निनाद हो

शब्द की कीर्ति सुना रय शारद।

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