उन्ही के पास बैठा हूं, उन्हे
छूने से डरता हूँ ।
निगाहें चार होती है, मगर
तकने से डरता हूँ ॥
न सिला है न गिला है,
जहाँ बैठें वो टीला है ।
छुपाकर ख़त जो लाया हूं,
उन्हे देने से डरता हूँ ॥
महकते फूल का गजरा
चमन से मांग लाया हूँ ।
हवा तू थम जरा पगली
महक जाने से डरता हूँ ॥
सरक चुनरी जो आँचल से,
मेरे नजदीक आई है ।
उठाकर दे नहीं सकता,
उसे छूने से डरता हूँ ॥
करे तो क्या करे इज़हार,
दिले बीमार बैठे है ।
‘मनु’ निगहबान होकर भी,
रजू करने से डरता हूँ ॥
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