दिल तो बच्चा है – नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

 माता पिता कि
आशा विश्वास
बच्चा बचपन!!

खुशियों का संसार
क्लेश कष्ट नहीं
आभास पल प्रहर
नव उत्साह बच्चा
बचपन!!

निर्मल मन
निर्विकार हृदय
प्राणी मात्र से
अपनापन बच्चा
बचपन!!

सिंह स्वान में
अंतर नहीं
सबसे सहज
अबुझ रिश्ते नातो
नेह स्नेह का
बंधन बचपन!!

पराए का बोध नहीं
कहती है दुनियां
बच्चे और भगवान
एक दूजे का दर्पण!!

चिंता शोक मिलन
विरह वियोग नहीं
निश्चिंत सुख
खुशियों का
बचपन!!

शैने शैने बीत जाता
बचपन किशोर
स्वर शंखनाद
माँ बाप क़े
विश्वास का
अभिनंदन
बचपन!!

बचपन कि
यादें ना चिंता
ना पल प्रहर
निकट आती
कब्र चिता का
भय निर्भीक
ख़ुशी पल प्रहर!!

आयु बढ़ती गयी
किशोर शांकनाद
हुआ प्रत्यक्ष
माँ बाप कि
आशाओ का
अभिमान कुछ
पूर्ण अपूर्ण!!

बचपन माँ आँचल
दुनियां संसार
बाप का कन्धा
संसार का ऊँचा
सिंघासन!!

बचपन बीता
आई जवानी
स्वंय माता पिता
बीते सपने जैसा
बचपन स्व संतान
पीढ़ी परम्परा का
जीवन दर्शन!!

बुजुर्ग माँ बाप कि
आशाओ का दीप
बचपन चिराग द्वेष
दम्भ घृणा दुनियां
समाज का अहं
भाग अवशेष!!

भाई भाई का शत्रु
माँ बाप का बटवारा
बचपन कि बाते ना
कोई अपना ना कोई
पराया दिवा स्वप्न
छलावा!!

निहित स्वार्थ कि
खातिर दुनियां का
हर रिश्ता नाता बात
भूखा नंगा बात बात
पर खून का
प्यासा!!

प्रेयासी पत्नी
पुत्र भाई बहन सब
अपने अपने हस्ती मस्ती
सुख स्वार्थ भोग भाग्य
संग व्यक्तिगत विशेष!!

बचपन कि बाते यादे
सबसे अपनापन सारा
संसार प्रेम प्यार कि
अवनी वंदन व्यर्थ!!

दिल कि चाहत फिर
जन्म लूँ बच्चा बन
बचपन का ही
हो जाऊं सनक
सनद सनक कुमार
बाल रूप के ऋषि कुमार
बन युगों युगों सृष्टि कि
दृष्टि बनता जाऊ!!

दिल बचपन कि
स्मरण यादों संग
जीवन अवसान को
बढ़ता जाता
दिल बच्चा ही
रह जाता!!

दिल बच्चा
बचपन कि
चाहत में
घुट घुट
जीता जाता
क्योंकि दिल बच्चा
ही रहता
अनुभव अनुभूति
मात्र जीवन पथ
कहलाता!!

बीते पल प्रहर कि
स्मरण यादें ही रह
जाती साथ दिल बच्चा
हैँ मात्र एहसास!!

क्योंकि बीते हुए लम्हो
कि कशीश कसक मात्र
साथ बीते लम्हें पल प्रहर
लौट कर नहीं आता
बचपन दिल बच्चा
ही रह जाता!!

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