पहलगाम की यह माटी है – गिरीश इन्द्र

 केशर के फूलों से सज्जित !
रक्त रश्मियों से अतिरंजित!
हुई पाप कर्मों से लज्जित !
पहलगाम की यह घाटी है।।

किसने निरपराध हैं मारा !
पूछ रहा है , भारत सारा !
किसने ऐसा किया पसरा।
घायल कर दी परिपाटी है।।

धर्म पूछकर , मारी गोली !
बलि-वेदिका,कराही!बोली!
कहाँ ! जवानों की है टोली !
बंध एकता – मन काटी है !?

हमको बांट नहीं सकते हो!
कर दो खाट नहीं सकते हो!
पत्तल , चाट नहीं सकते हो!
खाई खार ! कहाँ पाटी है ।।

चंदन पहलगाम की माटी !
वंदन पहलगाम की माटी !
नंदन पहलगाम की माटी!
नैसर्गिक-सुषमा पाटी है।।

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