दिनेश प्रताप सिंह चौहान

 1222 1222 122

भले फिर साथ,…..यह आलम नहीं है,
अग़र तुम हो ,….तो कोई ग़म नहीं है।

किसी के दर्द में ,…….जो रो न पड़ता,
भले कुछ और हो ,…..आदम नहीं है।

बहर से वज़्न से,……कुछ भी न होना,
अग़र जो कथ्य में,…कुछ दम नहीं है।

भले इंसान सा ,……..दिखता ये नेता,
मग़र शैतान से,…..कुछ कम नहीं है।

न तुझको प्रेम का,कुछ भी पता फिर,
अगर ये आँख तेरी ,……नम नहीं है।

समझना हो,. समझ लो आप सब ये,
ज़हालत से बड़ा,…कुछ तम नहीं है।

समय भी आज ,..कुछ सीधा चलेगा,
नहीं,..जुल्फों में उसकी ख़म नहीं है।

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