दिनेश प्रताप सिंह चौहान

 

वज़्न — 1222 1222 122

अर्कान — मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

बह्र — बह्रे-हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़

क़ाफ़िया — माजरा [ “आ ” की बंदिश ]

# रदीफ़ — है

“गिरह बंद मतला”
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“भला बस इस पे किसका,कब चला है,
मुहब्बत,…..इक मुसलसल माजरा है।”

“हुस्ने मतला”
“””””””””””””””
मुहब्बत ज़िंदगी का,…….फ़लसफ़ा है,
निरंतर चलने वाला,……सिलसिला है।

भला हल हो भी कैसे,…..मसअले का,
मुहब्बत,…ख़ुद में ही इक मसअला है।

नहीं कोई ,………….मुहब्बत में ये देखे,
ख़सारा है ,………कि इसमें फ़ायदा है।

ज़माना सब ,….भले हो मुखालिफ़ पर,
मुहब्बत करनेवाला ,……..कब डरा है।

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