221 2121 1221 212
घोषित हुए चुनाव,………तो नेता जी चल पड़े,
सोए हुए थे साँप,……….बिलों से निकल पड़े।
कुछ भी कहो ज़हान में,….पर इतना सोचकर,
ऐसा न कहो,….. ….वक्त के माथे पे बल पड़े।
इक ज़लज़ले में वक्त के,…..सब ख़ाक हो गए,
इस वक़्त के पैरों में थे ,……..सारे महल पड़े।
कमज़र्फ उनको ही कहा है ,…..इस ज़हान ने,
थोड़ा सा दुख दुखी हुए,……पाया उछल पड़े।
जिसको कि तूने छोड़ दिया,… तनहा तो बता,
फिर उसको भला इस जगत में,कैसे कल पड़े।
0 Comments