ज्ञानी गुरु और नन्हा हाथी का सबक



एक बहुत दूर गाँव में, एक ज्ञानी और दयालु गुरु रहते थे। उनके साथ उनका एक प्यारा शिष्य भी था। गुरु और शिष्य दोनों मिलकर गाँव-गाँव घूमते और सभी को अच्छी-अच्छी बातें सिखाते थे। वे जहाँ भी जाते, लोग उन्हें बहुत पसंद करते और उनकी बातें सुनने के लिए इकट्ठे हो जाते। देखते ही देखते, गुरुजी बहुत मशहूर हो गए!

लेकिन उसी गाँव में एक पंडितजी भी रहते थे। जब उन्होंने देखा कि गुरुजी इतने प्रसिद्ध हो रहे हैं, तो उन्हें थोड़ी ईर्ष्या होने लगी। उन्होंने सोचा, "अगर गुरुजी इतने लोकप्रिय हो गए, तो लोग मुझे भूल जाएँगे!" बस, पंडितजी ने गुरुजी के बारे में छोटी-छोटी गलत बातें और अफवाहें फैलानी शुरू कर दीं।

एक दिन, छोटे शिष्य ने कुछ लोगों को अपने प्यारे गुरु की बुराई करते सुन लिया। उसे यह सुनकर बहुत गुस्सा आया! उसका चेहरा लाल हो गया और वह भागा-भागा अपने गुरु के पास गया।

"गुरुदेव!" शिष्य ने गुस्से से कहा, "लोग आपके बारे में झूठी बातें फैला रहे हैं! वे आपको बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं! हमें उन्हें रोकना चाहिए!"

गुरुजी ने शिष्य को देखा और प्यार से मुस्कुराए। "शांत हो जाओ, मेरे प्यारे बच्चे," वे बोले, "हमें दूसरों की बुरी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। हमें बस अपना काम करते रहना चाहिए।"

लेकिन शिष्य का गुस्सा अभी भी शांत नहीं हुआ था। वह अभी भी बहुत नाराज़ दिख रहा था। तब गुरुजी ने उसे एक बहुत ही प्यारी और सच्ची कहानी सुनाई।

गुरुजी ने कहा, "सोचो, मेरे बच्चे! जब जंगल का एक विशाल और शांत हाथी गाँव में आता है, तो क्या होता है?" शिष्य ने सोचा और कहा, "गुरुदेव, मैंने देखा है! गली के छोटे-छोटे कुत्ते उसे देखकर भौंकने लगते हैं – 'भौंक-भौंक!', 'गुर्र-गुर्र!' वे हाथी के पीछे दौड़ते हैं और बहुत शोर मचाते हैं!"

"बिल्कुल सही!" गुरुजी ने कहा। "लेकिन क्या हाथी उन कुत्तों पर ध्यान देता है? नहीं! हाथी तो अपनी मस्त चाल में चलता रहता है। वह न रुकता है, न ही उन पर गुस्सा करता है। कुत्ते भौंकते-भौंकते थक जाते हैं और फिर खुद ही शांत होकर वापस भाग जाते हैं!"

गुरुजी बोले, "मेरे प्यारे बच्चे, हमें भी उसी बड़े हाथी जैसा बनना चाहिए। जो लोग हमारे बारे में बुरी बातें करते हैं, वे बस अपने मन की भड़ास निकालते हैं। अगर हम उन्हें जवाब देने लगेंगे, तो अपनी सारी ताकत और समय बर्बाद कर देंगे। हमें बस ईमानदारी से अपना काम करते रहना चाहिए। हमारे अच्छे कर्म ही हमारी असली पहचान होते हैं, और यही उन लोगों की सोच को बदल देते हैं।"

शिष्य ने गुरुजी की बात सुनी और उसका गुस्सा धीरे-धीरे शांत हो गया। उसे समझ आ गया कि बेकार की बातों पर ध्यान देना अपनी ताकत बर्बाद करना है। उसने गुरुजी से सीखा कि सच्चाई और अच्छे काम सबसे बड़े जवाब होते हैं!


मुख्य सीख:

  • छोटे कुत्तों (नकारात्मकता) को अनदेखा करें: दूसरों की बुरी बातों से परेशान न हों।

  • हाथी (अपने लक्ष्य) की तरह आगे बढ़ें: अपने काम पर ध्यान दें और ईमानदारी से करते रहें।

  • आपके कर्म ही आपकी पहचान: आपके अच्छे काम ही सबसे बड़ा जवाब हैं, जो दूसरों को शांत कर सकते हैं।

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