मैं क्रोध का कवि हूँ – बजरंग लाल सैनी “वज्रघन”

 मैं क्रोध का कवि हूँ।

शासन की निरंकुशता के विरोध का कवि हूँ,

मैं क्रोध का कवि हूँ।

व्यवस्था जब पथ से भटके,

काज मनुजता के हो अटके,

भटके जन पाने न्याय को,

राजनीति पोषित करे अन्याय को,

तब हर जन की पीड़ा की छवि हूँ।

मैं क्रोध का कवि हूँ।

शासन की निरंकुशता के विरोध का कवि हूँ,

भूखे को भोजन ना प्यासे को पानी,

बेकार ही बीत रही हो जब जवानी,

त्रस्त किसान, नष्ट हो रही किसानी,

मजदूर,कामगार,व्यापारी की यही कहानी,

तब शोषण के तम को तोड़ता रवि हूँ।

मैं क्रोध का कवि हूँ।

शासन की निरंकुशता के विरोध का कवि हूँ।

बच्चों का बचपन जब कोई छीनता हो,

हृदय होता विदीर्ण जब वह कचरा बीनता हो,

चौराहों की लाल हरी बत्ती पर भिखमंगे बच्चों की वो लाचारी,

ऐसा लगता है कि स्वयं महादेव करने लगे हो प्रलय की तैयारी।

तब उनके जीवन यज्ञ में जलता हवि हूँ,

मैं क्रोध का कवि हूँ।

शासन की निरंकुशता के विरोध का कवि हूँ।

जब तक शासन नहीं चेतेगा,

“वज्रघन” कवि चुपचाप नहीं बैठेगा, 

कलम से क्रांति का एक सैलाब उठेगा,

सितम और सितमगर का वजूद मिटेगा,

प्रसुप्त चेतना को उद्दीप्त करती अग्नि हूँ,

मैं क्रोध का कवि हूँ।

शासन की निरंकुशता के विरोध का कवि हूँ।

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