धृष्टराष्ट्र सब हैं बने – डॉ. राम कुमार झा “निकुंज”

 

धृष्टराष्ट्र सब हैं बने – डॉ. राम कुमार झा “निकुंज”

संजय उवाच – 

हे   राजन !   संसार में , राजनीति   का  .खेल।

दाँव  पेंच अरु  साम दान, भेद  दण्ड  गठमेल।।१।।

पद लालच धन सम्पदा , मिटे सकल  सम्बन्ध।

कौन किसी का कब बने , शत्रु  मीत अनुबन्ध।।२।।

इसमें भी कलिकाल है , बन रिश्ते बस  स्वार्थ। 

झूठ कपट धोखा छली, राजनीति    बस अर्थ।।३।।

कांग्रेस उवाच – 

धृष्टराष्ट्र   थे   हम   बने , संजय  भारत  वर्ष। 

किन्तु आज  सब  हैं पड़े , पुत्रमोह    उत्कर्ष।।४।।

शोकाकुल हैं आज हम ,निज सत्ता अवसान। 

धृष्टराष्ट्र  बन  सब अड़े , दुर्योधन  पद   मान।।५।।

दामोदर उवाच –  

धर्मयुद्ध   कुरुक्षेत्र  में , कूटनीति  बस    खेल।

त्याग शील परहित मनसि, रखो सभी से मेल।।६।।

बन सुभाष नित मित मृदुल ,धीर वीर समभाव। 

राजधर्म    यायावरित , कूटनीति   चल    दाँव।।७।।

विजयी पथ होता वही , रीति नीति चल प्रीति।

दृढ़ निष्ठा संकल्प निज, दिव्यदृष्टि  अरिभीति।।८।। 

अमित उवाच– 

हे नरेन्द्र  माया  जगत , राजनीति गति  राग।

टिका स्वार्थ अरि बन्धुता , नेता  भागमभाग।।

संजय उवाच — 

वीर  धीर  मतिमान  वो , पा  पद सत्ता जीत।

चल दाँव घाव संघर्ष पथ , सुख वैभव उद्गीत।।

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