रश्मि सिंह, रांची, झारखंड

 1. अमृत

न सोचना
प्याले
में पाओगे
अमृत बूंदें
कि पान करोगे
और अमर हो जाओगे

संघर्षों में तपो
निज स्वार्थ तजो
लोभ मोह से ऊपर
पर हित काज करो

शिव ने
विषपान किया जब
अमृत-मंथन
पूर्ण हुआ तब

जीवन
छोटा हो बेशक
पर हो सार्थक
कि कर्म के बल
सदियों रहो अमर

2. अंततः

कितना अस्थिर
कितना अस्थाई
कितना अनापेक्षित
है संसार ये
पल में कोई राजा है
क्षण में हुआ है रंक
आज बादशाहत जिसकी है
कल गिरा मिले वो पंक्
जब सब है क्षणभंगुर
फिर भी हैं सब आतुर
येन केन प्रकारेण
जितना लें समेट
आखिर क्यों
सच से अनभिज्ञ हो
अंतत: तो
विलीन होना है
पंचतत्व में
लीन होना है
माटी की है काया
फिर माटी होना है
पर माटी होने से पहले
इस संसार से
रुख्सत होने से पहले
सुंदर ये संसार बना ले….

3. कलम

जब तलक चलती रही
कलम
उसका कहा लिखती रही
वह कलम
अजीज़ रही उसको
बेहद वह कलम
लिखने लगी कुछ मन की
जो वो कलम
मनमानियाँ भी करने लगी
कुछ वो कलम
आवारा  लगने लगी तब
वही कलम
उसके सीने से लगी रहती थी कभी
जो कलम
कलमदान में भी खलने लगी उसे
अब तो वह कलम
सुना है कूड़ेदान में फेंकी जा चुकी है
अब वही कलम
करके कलम !!!!

4. अतीत

जिंदगी की किताब से
न फाड़ देना गुरूर में,
अतीत के बेशकीमती,
पन्ने किसी सुरूर में !
कभी आईना बनकर
अक्स वे दिखाएँगे,
कभी सब जब हारी-हारी,
मानस में पन्ने अतीत के
आकर अंतर्मन सहलाएँगे,
घोर निराशा के तम देखना
शनै शनै  छंट  जाएँगे
सबक-ए-जिंदगी
वक्त पे सिखलाएँगे।
तन्हाई में , मायूसी में
लब सहसा मुस्कराएंगे,
खुशियों वाले खोल पिटारे
झूम झूम जब जाएँगे।
आएगी विपदा जब भारी
होगी काया।
राह निकल आएगी सामने,
दिन भटकन के टल जाएँगे।

5. जश्न मनाते हैं चलो

जश्न मनाते हैं चलो
कुछ कुछ जिंदा होने का…..
जश्न मनाते हैं चलो
इंसानियत न खोने का……
जश्न मनाते हैं चलो
देख भूखा लाल कोई
मन में हलचल होने का……..
अब तलक हैं बचे शेष
मानवता के कुछ अवशेष
ज़श्न मनाते हैं चलो
उन अवशेषों के संचय का…….
इक साल नया फिर आया है
कपट ढोंग और गहराया है
झूठे मद में जीते जाते
किस भ्रम ने जाने भरमाया है
जश्न मनाते हैं चलो
इन सच्ची झूठी उम्मीदों का……
जश्न मनाते हैं चलो
अपने इंसां होने का…….

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