मेरी अंतहीन,
अंधेरी रातों कीबंजर हो चुकी नींद में
तुमने, कुछ सपनों के बीज बोए हैं
और मेरी पीली उदास भोर में
सूरज के फूल खिल आए हैं,
पता नहीं,
तुम्हें ये अहसास है या नहीं
कि मेरी उकतायी हुई खामोशियाँ
अब तुम्हारी हँसी का
इंतजार करने लगी है…,
तुमने कहा है,
तुम्हें मेरा साथ अच्छा लगता है
और फिर उसमें ‘लेकिन’ जोड दिया
तुम शायद ये समझ ना पायी
कि तुमने मेरे सामने
कितना बडा ‘सवाल’ छोड दिया
तुम्हें साथ लेकर चलते हुए
जिंदगी बडी आसान हो चली है
तुम्हारी आगोश में जिंदगी पुरसुकून दिखती है तुम्हारी आँखों की तरह
और तुमने मुझे समझाया है
जिंदगी की राहें बड़ी बिखरी हुई है
तुम्हारे इन गेसुओं की तरह,
पर मैं तो हूँ न, इन्हें संवारने के लिए
तुम आओ तो सही
क्या इतना भी नहीं करोगी
तुम मेरी ‘प्रीत’ के लिए……….
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