हलधर भारद्वाज

 1.संस्कारन कूँ छोड़ अब, भूलो सारो ज्ञान। 

जैसा कूँ तैसो मिले तभी रहेगो मान  ।। 

तभी रहेगो मान निकालो खुल के गाली। 

तब जनता की बात सुनेगी संसद साली।। 

2.केवल मेरी ही रहे मैं ही इसको दास। 

कुर्सी ऐसी बदचलन लड़े चार अय्यास।। 

लड़े चार अय्यास न कोई मौको छोड़े

चढ़ बैठू मैं आज फिरे सब दौड़े दौड़े।। 

3.रोजगार और भूख से जन जन है लाचार। 

उजड़ी फसल किसान की कैसे पावें पार। 

कैसे पावें पार न कोई नेता ऐसा। 

खूब करें प्रचार मीडिया लेके पैसा । । 

4.जिनके पग चप्पल नहीं फटी जेब बेहाल। 

पाकिस्तानी मुल्क पे क्यों नित मचे बवाल।। 

क्यों नित मचे बवाल  करे डीबेट मीडिया। 

बापन को दे साथ प्रगति की चढ़े सीढ़िया।। 

5. सर्व धर्म सद्भावना मानव का उत्थान। 

कर्म योग की प्रेरणा भारत का सम्मान।। 

भारत का सम्मान अटल है नहीं डिगेगा।।। 

प्रतिमा तोड़ो दुष्ट! नरेन्द्र न कभी मिटेगा।। 

6.

मै सृष्टि स्वरूपा आदिशक्ति मैं सृजित विश्व रखवाली हूँ। 

मै रौद्र स्वरूपा महाकाली मैं राम – कृष्ण महतारी हूँ। 

मुझसे भारत का गौरव हैं मैं स्वाभिमान की काया हूँ ।

मैं वीर शिवा, राणाप्रताप और भगत सिंह की माता हूँ

मैने शोणित को मथ मथकर इतिहासो का गान लिखा।

मैं त्याग तपस्या की मूरत मैं श्रम निष्ठा कल्याणी हूँ।। 

मै जटिल जटा से मार्ग खोजती शिव गंगा की धारा हूँ। 

मैं सरस्वती कृष्णा यमुना मैं सिंध राज्य की तारा हूँ। 

मैं नर्म स्वभावा सी शीतल मृदु नर्मदा की उर्मि हूँ। 

मैं वेत्रवती सरयू तापी और गोदावरी त्रिवेणी हूँ।। 

मैं स्वर्णमयी सी सोननदी मैं महाकाल की क्षिप्रा हूँ । 

मै दुबली पतली पीतवर्ण घन की विरही निर्विन्ध्या हूँ।

मैं वनवासी श्री राम प्रभु की पथगामिनी सीता हूँ। 

मैं ज्ञानमयी परमार्थमयी मैं श्रीकृष्ण की गीता हूँ। 

मै शास्त्र पुराणो की गाथा मैं कालिदास की उपमा हूँ। 

मैं उदित सूर्य की सविता हूँ मैं शरच्चंद्र की सुषमा हूँ

मैं हर्ष बाण और माघ भारवी  के मानस की प्रतिभा हूँ। 

मै वाल्मीकि के करूण शोक से प्रकट हुई ये कविता हूँ।।

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