जिंदगी के तरानों में ना
कोई उलझन होगी इबादत
मोहब्बत ख़ुदा की रहमत होगी
इधर जिंदगी का तराना उधर
खुदाई मोहब्बत होगी।।
रहमत होगी खुदा की किसी रहम
की नही कोई जरूरत होगी
देखने वालों के नज़र का नूर होगी
इधर नगमा सनम छेड़ेंगे उधर
जमाने मे हलचल होगी।।
हुश्न से घायल नही इश्क का
हुश्न होगी मिलन को ना रोक
पायेगा जमाना इधर हुश्न से
हट जाएगा नकाब दीदार
जन्नते हूर होगी।।
कलम की बंदिशें नहीँ ग़ज़ल
दिल की होगी अफसाने दुनिया
मशहूर होगी सनम दामन के दरमियाँ
महफिलों में शमा रौशन इधर मैं और
तू उधर दुंनिया मगरूर होगी।।
ना वो मेरे पीछे ना मैं उनके
आगे लम्हा लम्हा कदम कदम
हमदम उनकी नज़रों ने कह दिया
सब कुछ मेरी नज़रों ने जाना देखा
दुनियां ने बन गया अफसाना।।
सजने और संवरने दो और
कुछ निखरने दो मैं सिर्फ देखता
रहूं फितरत नही शोहरत के साथ
पैदा शोहरत का तूफान बढ़ने दो।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!
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