122 122 122 122
यहाँ असलियत ज़िंदगी की,.....यही है,
बहुत सारे ग़म,....सिर्फ़ थोड़ी खुशी है।
लगा शाप धन को है,....इस ज़िंदगी में,
ये दौलत हमेशा ही,....कम ही पड़ी है।
*"बड़े हैं वही,.... ....जो कि रह पाएं नंगे,
नया है ज़माना ,...........नई रौशनी है।*"
अज़ब हाल हैं ,......सारे बाजार रोशन,
मग़र रोशनी,दिल की मन की बुझी है।
0 Comments