दिनेश प्रताप सिंह चौहान

 " दोहा छंद मुक्तक"

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ज्ञान बाँटते हैं सभी,.....कभी न देते साथ,

साथ न चलते दो कदम,सिर्फ़ बताते पाथ,

रोने को देते नहीं ,......काँधा अपना लोग,

दुख में कोई भी नहीं, ....आँसू पोंछे हाथ।


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