पेशेखिदमत है एक गजल
बह्र 221 1222 221 1222
मफ़ऊलु मुफ़ाइलुन मफ़ऊलु मुफ़ाइलुन
काफिया -ओ स्वर
रदीफ़ – तुम भी
मतला..
सब सौंप दिया तुमको चाहत भी चुनो तुम भी।
खुशियों के ये पल भी आ मिल के बुनो तुम भी।
वो प्यार भरे लम्हे जो अब तक नही भूले हैं।
इस राहें मुहब्बत में आकर के जलो तुम भी।
हो प्यार हमारे तुम,बाँटी है दुआ हमने।
उल्फत हुई है तुमसें इक बार कहो तुम भी।
सेवा करें वो दिन में करती रही है पूजा
आ साथ ज़रा मिलकर दुख दर्द सहो तुम।
डूबें तेरी आँखो में गहरा सा उतरनें को।
आ जाम़ पियेगें मिलकर साथ पियों तुम भी।
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