वज़्न 221 1221 1221 122
बह्र बहर-ए-हज़ज मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
अरकानमफ़ऊल मुफ़ाईलु मुफ़ाईलु फ़ऊलुन
क़ाफ़िया : ” अर ” की बंदिश
रदीफ़ : तो नहीं है
मतला..
तक़दीर में देखा कोई मंज़र तो नहीं है
पत्थर हैं नसीबों में कलन्दर तो नहीं है।
होता है असर दिल में कि रो नही पाते
चुभती हैं वो बातें दिल पत्थर तो नही है।
जीवन को ज़िये हँस के कि खुशहाल रहें हम।
सोने को भलें आज कि बिस्तर तो नही है।
आ दूर ग़रीबी को करें मिल के सभी
बेकार ग़रीबो की बसर तो नही है।
ढूँढे है खुदा को तूँ कहाँ बंदे बता दे।
तू देख खुदा को,तेरे अंदर तो नही है।
ढूँढता है कि खुदा को तू कहाँ बंदे बता दे।
तू देख खुदा को,तेरे अंदर तो नही है।
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