एक बहुत दूर गाँव में, एक ज्ञानी और शांत संत रहते थे। उनके साथ उनका एक छोटा और चंचल शिष्य भी था। संत और शिष्य दोनों मिलकर गाँव-गाँव घूमते और अच्छी-अच्छी बातें बताते। उनकी बातें इतनी प्यारी और ज्ञान भरी होती थीं कि जहाँ भी वे जाते, लोग उन्हें घेर लेते और मन लगाकर उनकी बातें सुनते।
एक बार वे एक ऐसे गाँव में पहुँचे जहाँ संत का ज्ञान और अच्छे व्यवहार को देखकर सब लोग उनके दोस्त बन गए। गाँव के लोग उन्हें इतना पसंद करने लगे कि दूर-दूर से लोग उनसे मिलने आने लगे।
लेकिन उसी गाँव में एक और पंडित रहते थे। उन्हें यह सब देखकर थोड़ी ईर्ष्या होने लगी। उन्होंने सोचा, "अरे! ये संत तो बहुत मशहूर हो रहे हैं, लोग मुझे भूल जाएँगे!" बस, उन्होंने संत के बारे में छोटी-छोटी गलत बातें फैलानी शुरू कर दीं।
एक दिन, छोटे शिष्य ने कुछ लोगों को अपने प्यारे गुरु की बुराई करते सुन लिया। उसे बहुत गुस्सा आया! उसका चेहरा लाल हो गया और वह भागा-भागा अपने गुरु के पास गया।
"गुरुदेव!" शिष्य गुस्से से बोला, "लोग आपके बारे में झूठी बातें फैला रहे हैं! वे आपको बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं! हमें कुछ करना चाहिए!"
संत ने शिष्य को देखा और प्यार से मुस्कुराए। "प्यारे बच्चे," वे बोले, "हमें दूसरों की बुरी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। हमें बस अपना काम करते रहना चाहिए।"
पर शिष्य का गुस्सा शांत नहीं हुआ। वह अभी भी नाराज़ था। तब संत ने एक बहुत ही प्यारी कहानी सुनाई, जिससे शिष्य का गुस्सा ठंडा हो गया।
संत ने कहा, "सुनो, मेरे बच्चे! क्या तुमने कभी जंगल के बड़े हाथी को गाँव में आते देखा है?" शिष्य ने सिर हिलाया, "हाँ गुरुदेव, देखा है।"
"तो तुमने देखा होगा," संत ने कहा, "जब एक बड़ा और शांत हाथी जंगल से गाँव में आता है, तो गली के छोटे-छोटे कुत्ते उसे देखकर भौंकने लगते हैं – 'भौंक-भौंक!', 'गुर्र-गुर्र!'। वे हाथी के पीछे दौड़ते हैं और शोर मचाते हैं।"
संत ने मुस्कुराते हुए आगे कहा, "लेकिन क्या हाथी उन कुत्तों पर ध्यान देता है? नहीं! हाथी तो अपनी मस्त चाल में चलता रहता है। वह न रुकता है, न ही उन पर गुस्सा करता है। कुत्ते भौंकते-भौंकते थक जाते हैं और फिर खुद ही शांत होकर वापस भाग जाते हैं।"
संत बोले, "मेरे प्यारे बच्चे, हमें भी उस हाथी जैसा बनना चाहिए। जो लोग हमारे बारे में बुरी बातें करते हैं, वे बस अपने मन की भड़ास निकालते हैं। अगर हम उन्हें जवाब देने लगेंगे, तो अपनी सारी ताकत और समय बर्बाद कर देंगे। हमारा काम तो बस अच्छे काम ईमानदारी से करना है। हमारे अच्छे कर्म ही हमारी असली पहचान होते हैं, और यही उन लोगों की सोच को बदल देते हैं।"
शिष्य ने गुरुजी की बात सुनी और उसका गुस्सा धीरे-धीरे शांत हो गया। उसे समझ आ गया कि बेकार की बातों पर ध्यान देना अपनी ताकत बर्बाद करना है। उसने गुरुजी से सीखा कि सच्चाई और अच्छे काम सबसे बड़े जवाब होते हैं!
कहानी से सीख:
छोटे कुत्तों (बुरी बातों) पर ध्यान न दें, बड़े हाथी (अपने लक्ष्य) की तरह चलते रहें!
गुस्सा करने से कुछ नहीं मिलता, शांत रहना ही सबसे बड़ी ताकत है!
अपनी ऊर्जा को अच्छे काम में लगाओ, बहस में नहीं!
तुम्हारे अच्छे काम ही तुम्हारी सबसे अच्छी पहचान हैं!
उस दिन के बाद, शिष्य ने कभी किसी की बुरी बातों पर ध्यान नहीं दिया। वह अपने गुरुजी की तरह शांत और मेहनती बन गया, और अपने अच्छे कामों से सब का दिल जीत लिया!
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