बहुत-बहुत पुरानी बात है। एक छोटे से प्यारे गाँव में एक कलाकार रहते थे, जिनका नाम था मूर्ति-मामा। मूर्ति-मामा इतने कमाल के मूर्तिकार थे कि वह पत्थर और मिट्टी से ऐसी सुंदर मूर्तियाँ बनाते थे, जिन्हें देखकर लगता था जैसे वे अभी बोलने लगेंगी! उनकी बनाई मूर्तियाँ इतनी असली लगती थीं कि लोग उन्हें देखकर हैरान रह जाते थे। आस-पास के सभी गाँवों में मूर्ति-मामा का नाम था, और हर कोई उनकी कला का दीवाना था।
इतनी तारीफें सुनकर मूर्ति-मामा को अपनी कला पर बहुत घमंड हो गया था। उन्हें लगने लगा था कि उनसे बेहतर मूर्तिकार कोई नहीं है।
समय बीतता गया, और एक दिन मूर्ति-मामा को महसूस हुआ कि अब उनका समय पूरा हो रहा है, वे ज़्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह पाएँगे। मृत्यु के विचार से वे बहुत परेशान हो गए। उन्होंने सोचा, "मुझे यमदूतों को धोखा देना होगा, जो प्राण लेने आते हैं!"
मूर्ति-मामा ने एक शानदार योजना बनाई। उन्होंने तुरंत अपने जैसी दिखने वाली दस हुबहू मूर्तियाँ बनाईं। वे इतनी असली थीं कि पहचानना मुश्किल था। फिर मूर्ति-मामा खुद उन दस मूर्तियों के बीच जाकर बैठ गए, बिलकुल एक मूर्ति की तरह शांत।
जब यमदूत मूर्ति-मामा के प्राण लेने आए, तो वे ये देखकर दंग रह गए! वहाँ एक जैसी ग्यारह आकृतियाँ थीं। यमदूतों ने अपनी आँखें मल-मल कर देखा, पर वे पहचान नहीं पा रहे थे कि असली इंसान कौन है।
वे सोचने लगे, "अरे! ये क्या हुआ? अगर हम असली मूर्ति-मामा को नहीं पकड़ पाए, तो सृष्टि का नियम टूट जाएगा। और अगर हमने सभी मूर्तियों को तोड़ दिया, तो इतनी सुंदर कला का अपमान हो जाएगा!"
तभी, एक बहुत समझदार यमदूत के दिमाग में एक विचार आया। उसे पता था कि इंसान की सबसे बड़ी कमज़ोरी क्या होती है – घमंड!
उस यमदूत ने सभी मूर्तियों को ध्यान से देखा और फिर एक गहरी साँस ली। उसने जानबूझकर ऐसे बोला जैसे वह किसी से शिकायत कर रहा हो, "अरे! ये कितनी सुंदर मूर्तियाँ बनी हैं! लेकिन इन मूर्तियों में एक छोटी-सी गलती है। काश मूर्ति बनाने वाला मेरे सामने होता, तो मैं उसे बताता कि उसने मूर्तिकला में कहाँ गलती की है!"
यह सुनकर मूर्ति-मामा के कान खड़े हो गए। उनका घमंड जाग उठा। उन्होंने सोचा, "मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी मूर्तियाँ बनाने में लगा दी! भला मेरी मूर्तियों में क्या गलती हो सकती है?"
और अपने घमंड को रोक न पाए, मूर्ति-मामा झट से बोल उठे, "कैसी गलती?! मेरी मूर्तियों में कोई गलती नहीं हो सकती!"
जैसे ही मूर्ति-मामा बोले, यमदूत ने तुरंत उन्हें पहचान लिया और पकड़ लिया!
यमदूत ने मुस्कुराते हुए कहा, "बस, यही तो गलती कर गए तुम अपने घमंड में, मूर्ति-मामा! बेजान मूर्तियाँ बोला नहीं करतीं!"
मूर्ति-मामा को अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है:
घमंड (अहंकार) हमेशा परेशानी लाता है।
कितने भी अच्छे क्यों न हों, हमें घमंडी नहीं होना चाहिए।
शांत रहना और अपनी कमज़ोरी को छुपाना भी कभी-कभी ज़रूरी होता है!
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