जिंदगी ठहर गयी
यादों में रह गयी!!
खुशियाँ जिंदगी अब भी
खुश किस्मत नशीब
आम इंसान के ख्वाबों में
बस गयी!!
सुबह सड़क पे
निकलना बाँहों में बाहें
डाल कर टहलना
बाज़ार कि रौनक
शॉपिंग माल कि नाइट
डीनर बस बात कि
बात रह गयी है ।।
पार्टियों का दौर
गीत गाने का शोर
वन्स मोर वन्स मोर
थम गयी जिंदगी
बोर हो गयी!।
ना बचा है जोश जश्न का
गुमान जिंदगी अब बोझ
बन गयी है ।।
काटे नहीं कटता
जिंदगी का लम्हा लम्हा
चाँद सा प्यारा चेहरा ।
शोला और चिंगारी
लगने लगी है।।
घर था एक मंदिर
प्यार परिवरिश कि थी
दीवारे घर में ही जिंदगी
कैद हो गयी ।।
जिन्दगी अब बेजान बेजार
हो गयी घर पर साथ बैठ
चाय कि चुस्कीयो पे
गप्पे लड़ाना घर में ही
एक दूजे से हो गए बेगानी
हो गयी है।।
जवाँ जिंदगी के
जज्बे जज्बात हो
गए है गायब सूरज
निकलने के साथ ही
शाम हो गयी है ।।
बंद हुई महफिले
गीत गज़ले शहनाई
रस्मे कसमें जिंदगी
बस अदायगी रश्म
रह गयी है ।।
हर शाम शौहर के
इंतज़ार में सजाना
संवरना प्यार दिल में है
जिंदगी दूरिया दरमियाँ
सिमट गयी है।।
आईने को भी अरमानो
उम्मीद का मायूस चेहरा
देखते देखते उबन
सी हो गयी है।।
नज़रों का नूर बेनूर हो
जाना जिंदगी सील सिले
को जज्ब कर रही है।!
जिंदगी अब खुदा
कायनात कि मोहताज़
मयस्सर हो गयी है।।
टूट रहा इंसान का
गुरुर जूनून जिंदगी
अब खुदाई करिश्मा
आश रह गयी है।।
वक्त के हाथ मजबूर
वक्त के ही इंतज़ार में
जिंदगी कट रही है।।
शायद फिर आये
चमन में बहार मैसम
खुशगवार गुलशन हो
गुलज़ार!!
यकीन इबादत
इंतज़ार जिंदगी
रह गयी है।।
कहर का क़ुफ़्त
दहसत लम्हा दिन रात
जिंदगी बीरान
आदत सी हो गयी है।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!
0 Comments