शराबी का मुकदमा – धर्मराज देशराज, सीहोर

 अवकाश के दिन था मास्टर सत्यव्रत अपने बरामदे में टहल रहे थे कि एक ऑटो रिक्शा आकर रुका, उसमें से एक विकलांग युवक दीनू घिसटते हुए आया और बोला–भाई साहब, आपके पुराने मकान के पास ही रहता हूँ। मुझे डॉक्टर ने ब्लेड प्रेशर की दवाएं लिखी हैं, डॉक्टर का पर्चा लेकर मेडिकल की दुकान पर गया था, किन्तु उसने उधार देने से मना कर दिया, तब मुझे आपका ध्यान आया और ऑटो करके आपके पास बड़ी उम्मीद लेकर आया हूँ। मुझे पांच सौ रुपये उधार दे दीजिये, दो-तीन दिन में वापस लौटा दूँगा।

सत्यव्रत को उस पर दया आई और पांच सौ रुपये दे दिये।
रुपये लेकर दीनू वापस ऑटो में बैठ कर चला गया। तभी अंदर से उनका पोता विजय आया और बोला–दादा जी, आपने उसे रुपये क्यों दे दिये, वो पक्का शराबी है, आप जाकर देख लीजिये, वो ऑटो वाले के साथ ही कलारी पर मिलेगा।
यह सुनकर मास्टर सत्यव्रत सोच में पड़ गये और अपनी साइकिल निकाल कर शराब की दुकान पर जा पहुंचे, उन्होंने देखा सचमुच वो ऑटोवाला, दीनू और एक अन्य शराबी बैठे शराब पी रहे थे।
दीनू बोला- क्या मूर्ख बनाया, बड़ा आया मास्टर कहीं का।
ऑटोवाला बोला- तरकीब तो मैने बताई थी। फिर सब कहकहे लगाने लगे। मास्टर सत्यव्रत मन ही मन गुस्सा होते हुये वापस आ गये।
तीन दिन बाद ही दीनू के घर जाकर सत्यव्रत ने कहा-ला भाई मेरे पांच सौ रुपये दे दे, तूने आज की बोला था। तब दीनू बोला- अभी मेरे पास नही है, जब आ जाएंगे दे दूंगा।
सत्यवत बोले- तूने धोखा देकर रुपये लिये और दोस्तों के साथ शराब पी गया, मन करता है दो-चार हाथ जमा दूँ।
तब दीनू बोला-हिम्मत हो तो हाथ लगाकर देख लो।
यह सुनते ही सत्यव्रत ने एक जोरदार चांटा उसे जमा दिया, दूर से यह तमाशा देख रही उसकी बहन दौड़कर आई और गुस्से से बोली- मालूम है ये शराबी है तो पैसे देते क्यों हो।
दीनू की मां भी आ गई और बोली – जब वो कह रहा है दे देंगे, तो यकीन करना था। मेरे बेटे पर हाथ उठाने का तुन्हें क्या हक़ ? बिना वाप का है इसलिये हिम्मत हो गई।
मास्टर सत्यवृत बोले- इसने मुझे धोखा दिया, इसी कारण मैने चांटा मारा है, अगर तकलीफ हो रही है तो निकालो मेरे रुपये, वरना फिर किसी दिन आऊंगा और धुलाई करके जाऊँगा।
यह कहकर सत्यव्रत अपने घर आ गये, अभी उनको आये एक घण्टा भी नही हुआ होगा, दो पुलिस वाले आ गये और अपने साथ थाने ले गये।
वहां टी.आई. बोले – मास्टर जी, आपको शर्म नही आई एक लँगड़े – लूले विकलांग को मारने में, आपने उससे ट्यूशन पढ़ाने के बदले तय की राशि से ज्यादा मांगी, और न देने पर उसकी पिटाई की, दो गवाह भी ये साथ लाया है। आपने इसे गाली भी दी हैं। आपके खिलाफ़ मामला दर्ज किया गया है। सत्यव्रत ने बहुत सफाई दी, लेकिन उनकी कुछ भी न चली, नतीजा ये हुआ कि उनको एक रात वहीं काटने पड़ी। दूसरे दिन मास्टर जी को अदालत में प्रस्तुत किया गया, जहां मुश्किल से उनकी जमानत मंजूर हुई। और तीन दिन बाद की तारीख मिल गई।
जमानत के बाद मास्टर जी को कभी अपने विभाग से निलम्बन का डर सताने लगा कभी सज़ा होने की स्थिति ध्यान में आने लगी।
तीसरे दिन सुबह-सुबह मास्टर जी अपने कमरे में टहल रहे थे, उनका बेटा विजय और पत्नी मोबाइल चला रहे थे। तभी दीनू आपने वकील के साथ आ गया और राजीनामे के कागज सामने रखकर बोला-वकील साहब अब आप बाहर जाकर बैठिये, इनसे मैं खुद बात कर लूंगा। तब वकील साहब बाहर चले गये तब दीनू बोला -मास्टर जी, आप बहुत बुरे फंस गये हो, आप पर 294, 323, 506 आदि कई धाराएं लगीं हैं, मुझे पता है कि आपनें गलत कुछ भी नहीं किया, ना जान से मारने की धमकी दी, न गाली दी, फिर भी आपको फंसा लिया है। कुछ दे लेकर राजीनामा कर लो, वरना नोकरी तो जायेगी ही साथ मे कड़ी
सजा भी होगी।
मास्टर जी ने पांच हज़ार रुपये देकर राजीनामे पर हस्ताक्षर कर दिये।
अदालत में राजीनामा पेश किया गया, तब जज साहब बोले-भाई, सब धाराओं में राजीनामा स्वीकार करता हूँ, लेकिन गाली-गलौच की धारा 294 में राजीनामा नही होता, इसका तो मुकदमा चलेगा, अगर आरोप साबित होगा तो सज़ा भी होगी।
गाली-गलौच करना सामाजिक अपराध है। अगली तारीख को सब लोग अपनी तैयारी गवाह सबूत आदि के साथ आएं।
जज साहब की बात सुनकर मास्टर सत्यव्रत सोच में पड़ गये, उन्होंने दीनू के वकील से पूछा तो उसने कहा- मास्टर जी ये अदालत है, ये अदालत दो शब्दों से मिलकर बनती है, अदा और लत यानी यहां अदा दिखाते हुये आओ और लात खाकर जाओ। घर मे आपकी कितनी शान और शौकत हो, लेकिन यहाँ दरवाजे पर खड़ा होकर आवाज लगाने वाला चपरासी भी असभ्य तरीके से आपको नाम से पुकारता है। अदालत और पुलिस थाने के नाम से अच्छे-अच्छे भी कांपते हैं, आप कुछ और भेंट-पूजा कर देना दीनू के बयान बदलवा दूंगा। वो कह देगा आपने गाली तो खूब दी थीं, लेकिन उसे वो सब गालियां अच्छी लगीं, अरे भाई, जब अच्छी लगीं तो वो गालियां हो ही नही सकती।
मास्टर सत्यव्रत ने आश्चर्य से सब कुछ सुना और बोले- वकील साहब, मैने गालियां तो उसे दी ही नही फिर ये धारा कैसे लग गई।
वकील बोला-अब आप अदालत में सिद्ध करना।
बहुत बहस के बाद फिर पांच हज़ार में सौदा तय हुआ।
निर्धारित तिथि को अदालत में कटघरे में आकर दीनू ने कहा-सर जी, इन्होंने मुझे गाली तो बहुत दी थीं लेकिन मुझे सुनने में अच्छी लगी थी, अब तो मुझे कुछ याद भी नही हैं।
तभी मास्टर सत्यव्रत जी को बेटा विजय वहां आया और बोला – जज साहब मुझे इस मुकदमे के बारे में कुछ कहना है। ये मुकदमा शुरू से ही झूठा था, मेरे पास इन लोगों की मोबाइल पर रिकार्डिंग है जिसमे इन्होंने कुबूल किया है कि हम ये झूठा मुकदमा जीतकर दिखाएंगे, तुमने गाली नही दी, हम चाहें तो सब कुछ सिद्ध कर देंगे।
जज साहब ने मोबाइल लेकर जब रिकार्डिंग सुनी वीडियो देखा तो बोले- दीनू और उसके दोनों गवाह को गिरफ्तार किया जाये, कानून को धोखा देने और मास्टर सत्यव्रत जी को परेशान के जुर्म में इन सबको कड़ी सजा दी जाएगी।
और मास्टर जी, आप ऐसे लोगों से दूर रहा कीजिये, आपको आपकी सज्जनता की सज़ा मिल जाती।
जब मास्टर जी अदालत से बाहर निकले तब उनके वकील ने कहा-मास्टर जी, हमारे पूर्वज कह गये हैं, कि जो पात्र हो उस पर ही दया करना चाहिये। दुनियां में शराबी और जुआरी अगर गर्म तवे पर भी बैठ कर कसम भी खाएँ, तब भी इनका भरोसा नही करना चाहिये। इंसान को ज्यादा सीधा भी नही होना चाहिये।

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