सिर्फ तुम – नरेश चाष्टा” नक्ष”

 शून्य सा ठहराव हो तुम।

क्षितिज सा आधार हो तुम।
गति को तुम चपला सी।
नीर सा आकार हो तुम।

इंद्रधनुष में रंग तुम से है।
प्रेयसी का पीर हो तुम।
तुम बिन सूना सीप का मोती।
कुदरत की वो तासीर हो तुम।

सौम्या सा चेहरा नयन सजल से।
यज्ञ की पूर्णाहुति हो तुम।
व्यक्तित्व मानो पुष्प कुंज सा।
कान्हा की मुरली हो तुम।

स्वप्न हो तुम भौंर का ।
भावुक चक्षु का नीर हो तुम।
प्रेरणा हो तुम दीप सी
मनभावन मीत हो तुम।

तुम्हारी मुस्कान बयार पवन सी।
अदृश्य प्रसून की सुगंध हो तो।
तुमको पाना एक ख्वाब सा
वो अनंत परछाई तुम।
शून्य सा ठहराव…………..

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