एक खिड़की
एक ये आसमाँ,
एक खिड़की में जहाँ,
जिसकी रोशनी में इन आँखों को मिला,
अपना सुकून और ख़ुदा।
जो सुबह, दोपहर, शाम के बाद,
तब खुली जब हुआ अंधेरा
मेरे गम की दवा,वो खिड़की और उजाला,
उस खिड़की के अंदर का चेहरा।
जैसे इस आसमाँ,
के परे है कोई ख़ुदा,शायद,
वैसे उस खिड़की के पीछे है मेरा ख़ुदा,
मेरे आंसुओं की कुछ वजह।
खिड़की भी रोती है कभी,
बस जब वो होती है बंद।
मैं शर्मिंदा हूँ, उसके गम को न समझा,
उस खिड़की को क्या लगा?
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