212 212 212 212
वक्त ही ,.....सब ज़माने में सरताज है,
वक़्त का ही,... ज़माने पे,बस राज है।
हर समय है,...उलटता पलटता समय,
कल उलट उसके,जो हो रहा आज है।
कोई ,.आवाज इसकी नहीं सुन सका,
हर समय है भले ,...बज रहा साज है।
वो बना दे ,.....सिकंदर को बंदर यहाँ,
मूर्ख ,..क्यों कर रहा वक्त पर नाज़ है।
फिर बचाने न ,....कोई भी आता उसे,
वक़्त की जाके,जिस पे गिरी ग़ाज़ है।
0 Comments