बैसाखियां
परजीवी की सवारी
भरोसे की जिंदगी
हां, बैसाखियां
जब सर पर रहती सवार
तब कमजोर आदमी जीता
राम भरोसे की जिंदगी
और हर बात पर करता हां - हां
मगर, जब बैसाखियां
पड़ती कमजोर - बेअसरदार
तब परजीवी चरित्र का आदमी
इंतजार में गुजार देता वक्त
और जब बैसाखियां होती दमदार
तब लांघ जाता अकड़ में मर्यादा
सच, आदमी विचित्र प्राणी
बैठे - बैठाये चाहता मंजिल
और, जब मिलता नहीं ठौर
तब खोजने लगता बैसाखियां
सच, बैसाखियां, बैसाखियां
कमजोर आदमी की पहचान
राम भरोसे की जिंदगी।
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