दिनेश प्रताप सिंह चौहान

 1.

2122-2122-2122-212
जिस जगह अंग्रेज भी,पहुँचे नहीं अपने समय,
हो गए आज़ाद जब,हम सब वहाँ तक आ गए।
काम कोई अब यहाँ पर,..हो नहीं रिश्वत बिना,
देखिए आज़ाद होकर,.हम कहाँ तक आ गए।

2.
1212 1122 1212 22/112
करो गरीब की सेवा ,….दुखी का दर्द हरो,
समझ लो तीर्थ,.सभी धाम इसमें आते हैं।
किसी के पोंछना आँसू भी ,..एक यज्ञ रहे,
समझ, कि ईश के सब नाम इसमें आते हैं।

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