प्रेम – नवल किशोर भट्ट, नई दिल्ली

 रहेगा शेष

प्रेम

हर घृणा के बाद

हर क्रोध के बाद

अंततः

रहेगा शेष

प्रेम

हिंसा प्रतिहिंसा

की आग

धधकेगी

तृष्णा कामना

की व्याधि

भभकेगी

अंह की सत्ता

मागेगी सर्वोच्च आसन

कुकल्पनाओं से भ्रमित होगा

मन

अंदर बाहर

हाहाकार

यंत्रणा फिर

बार बार

आत्मा चीखेगी

व्यर्थता दीखेगी

चीत्कार और सीत्कार के बाद

जन्मते शिशु जैसा

उगेगा प्रेम

हर अनर्थ के बाद

हर प्रलय के बाद

रचेगा सृष्टि 

प्रेम

रहेगा शेष

प्रेम

©नवल किशोर भट्ट

                  ” सपने”

सपने

सपने ही सपने!

खुला आकाश

उन्मुक्त विचरते पक्षी

चहचहाते और खिलखिलाते बच्चे

मिट्टी की गंध

एक टुकड़ा आकाश

और उसमें टंगे

सूरज चॉद सितारे

कई दिनों के बाद

इतना अच्छा सपना देखा

सुबह

कई दिनो के बाद मुस्कुराई

चिंता तनाव और बेचैनी

वही रोज की आपाधापी

वही रोज का शोर

वही मुर्दा शाम

और वेस्वाद खाना

झूठ दगा और बेइमानी

वही छल और कपट का कारोबार

वही यांत्रिक संबंधों की यंत्रणा

वही कृत्रिम व्यवहार

और बेमजा संसार!

शायद 

सबसे असहज होता है

एक 

सहज जीवन जीना

जैसे

फूल का  खिलना

तितलियों का उड़ना

कुत्तों का लड़ना

साड़ों का भिड़ना

कई दिनों बाद 

लगा कि

बारिस में भीगना 

भी जरूरी है

जीवन

बेशक सपनों से नही चलता

लेकिन

सपना भी जीवन को बुनता है

आदमी

कुछ नए से गीत

शायद

सपनों में ही सुनता है

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